रिलेशनशिप और मैरिज जानिये अपनी कुंडली से (Relationship and Marriage in Astrology) : PART-3

रिलेशनशिप और मैरिज जानिये अपनी कुंडली से (Relationship and Marriage in Astrology) : PART-3

वैदिक ज्योतिष(Vedic Astrology) के अनुसार विवाह(Marriage) में देरी या बाधा के अनेक कारण और कारक बताये गए हैं| लेकिन उन सबकी चर्चा से पहले मैं कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि बताये गए किसी एक योग से अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए| उसके लिए पूरी कुंडली(Kundli) का विश्लेषण जरुरी है| क्योंकि ऐसे बहुत से एलिमेंट हैं जिनको देखे बिना कुछ नहीं कहा जा सकता । बहुत से ऐसे योग हैं जिनको देखकर लगता है कि इस व्यक्ति के विवाह(Marriage) में बड़ी बाधा आने वाली है| लेकिन कुंडली(Kundli) में उनके कॉउंटरपार्ट भी होते हैं फिर नवांश कुंडली के बिना देखे अंतिम निर्णय नहीं करना चाहिए । हालाँकि विवाह(Marriage) में देरी या बाधा के लिए सातवां घर सबसे इम्पोर्टेन्ट होता है | इसके अलावा मंगल और शनि कि स्थिति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।प्रेम(Love) या सम्बन्ध(Relationship) के लिए इन ग्रहों कि स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है |

वैदिक ज्योतिष(Vedic Astrology) के अनुसार मंगल ग्रह(Grah) अगर कुंडली(Kundli) में 1 ,4 ,7 ,8 ,या 12 वें घर में बैठा हो तो मांगलिक दोष माना जाता है| इसी तरह अगर शनि(Shani) ग्रह(Grah) कि दृष्टि सातवें घर पर पड़ रही हो| या सातवें घर का मालिक शनि(Shani) के साथ बैठा हो तो अक्सर विवाह(Marriage) में देरी का कारण बनता है । मैंने अक्सर देखा है पहले, पांचवें और दसवें घर में बैठा हुआ शनि अक्सर विवाह(Marriage) में देरी का कारण बन जाता है | क्योंकि उसकी दृष्टि सातवें घर पर पड़ रही होती है ।इसी तरह सातवें घर के मालिक का बलवान या मजबूत स्थिति में होना जरुरी है |यदि वो कमजोर होकर 6 ,8 या 12 भावों में हो तब भी विवाह में देरी देखी जाती है । सातवें घर का मालिक यदि 6 ,8 ,12 के मालिक के साथ हो तब भी अच्छे परिणाम नहीं मिलते ।ऐसी स्थिति में पार्टनर के प्रति प्रेम(Love) नहीं होता या सम्बन्ध(Relationship) अच्छे नहीं होते|

कुंडली(Kundli) में राहु(Rahu) केतु(Ketu) की स्थिति भी महत्वपूर्ण है| अगर सातवें घर के मालिक का सम्बन्ध इन ग्रहों से बनता है तब भी विवाह(Marriage) में देरी संभव है ।अब चर्चा कुछ ऐसे कॉउंटरपार्ट की जो शादी(Marriage) में देरी का कारण बने योग होने पर भी सही समय पर विवाह करवा देते हैं| नवांश कुंडली(Kundli) में सातवां घर या सातवें घर का मालिक सही स्थिति में हो तो शादी(Marriage) सही समय पर होती है । वैदिक ज्योतिष(Vedic Astrology) के अनुसार कुंडली(Kundli) में बृहस्पति ग्रह(Grah) की दृष्टि अगर सातवें घर पर पड़ रही हो |या बुध शुक्र और चन्द्रमा की स्थिति सही हो , बलशाली सातवें घर के मालिक के साथ सम्बन्ध बना रहे हों तो उचित समय पर विवाह(Marriage) का योग बनता है ।प्रेम(Love) सम्बन्ध(Relationship) भी अच्छे बन सकते हैं |

वैदिक ज्योतिष(Vedic Astrology) के अनुसार कुंडली(Kundli) में विवाह(Marriage) जैसी घटना के समय के बारे में भी स्पष्ट संकेत मिलते हैं |उसके लिए लगन, लगन का स्वामी, सातवां घर,सातवें घर का मालिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | इन ग्रहों की अन्तर्दशा हो तो उस समय विवाह(Marriage) का योग(Yog) बनता है| यही नियम नवमांश कुंडली(Kundli) पर भी लागू होता है| इसके अलावा शनि(Shani) और बृहस्पति ग्रह(Grah) का गोचर(Transit) भी इम्पोर्टेन्ट माना जाता है । गोचर में 1 ,7 या उनके मालिक ग्रहों पर दृष्टि के दौरान भी विवाह(Marriage) का योग(Yog) बन सकता है । सातवें घर के बैठे या मालिक ग्रह के नक्षत्र की अवधि भी विवाह(Marriage) का योग(Yog) बना सकती है । इसके अलावा शुक्र और राहु(Rahu) की अन्तर्दशा में भी विवाह(Marriage) का योग(Yog) बनता है ।

वैदिक ज्योतिष(Vedic Astrology) में देश, काल और परिस्थितियों को बहुत इम्पोटैंस दी जाती है और दी भी जानी चाहिए| क्योंकि विवाह(Marriage) जैसी पवित्र परंपरा जो भारत में है वो अमेरिका या किसी भी पश्चिमी देश में नहीं है| संस्कारों और एनवायरनमेंट के अलावा आपके समाज के नियम भी इम्पोर्टेन्ट हो जाते हैं| जिनका भविष्यकथन करते हुए ध्यान रखा ही जाना चाहिए। परिस्थिति से मेरा मतलब एक और बात की तरफ आपका ध्यान दिलाना है | मानो कंही भूकंप , सुनामी या कोई अन्य त्रासदी से हजारों लोगों की जान चली जाती है| इससे ये तो नहीं कह सकते की मरने वाले सभी लोगों की कुंडली(Kundli) में मृत्यु योग था। इसलिए सबसे पहले ब्रहांण्ड ,ग्रह-नक्षत्र , फिर धरती, उसके बाद आपके स्थान की परिस्थिति और अंत में व्यक्ति की कुंडली(Kundli) आती है । इसकी हम विस्तार से फिर कभी चर्चा करेंगे| लेकिन अभी इस वैदिक(Vedic) मन्त्र के साथ आज के पोस्ट की समाप्ति : सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,माँ कश्चित् दुःख भाग भवेत् ।

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