ग्रहों का स्वाभाव ( Grahon ka Swabhav )
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- On March 8, 2020
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ग्रहों का स्वाभाव (Grahon ka Swabhav)
हमारा विषय है : ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) यहां विस्तार से बताएँगे कि प्रत्येक ग्रह से किन किन बातों का विचार किया जाना चाहिए , किस चीज या वस्तु का कौन सा ग्रह कारक है | इसकी बात करने से पहले आपको एक और महत्वपूर्ण जानकारी देना जरुरी है और वो है उस ग्रह का स्वाभाविक गुण और भावों के अनुसार उसका फल | मान लिया 12 आदमियों की कुंडली में शुक्र अलग अलग 12 भावों का स्वामी है | जिस कुंडली में लगन में शुक्र बैठा है उसमे लग्नेश का प्रभाव दिखायेगा , जिस कुंडली में दसवें घर में शुक्र बैठा है उसमे कर्म भाव के अनुसार फल करेगा | परन्तु शुक्र का अपना स्वाभाविक गुण क्या है , जिन वस्तुओं का वो करक है वही सब नीचे दिए गए ग्रह और उसके कारक एवं गुण दोष में जानने को मिलेगा | ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) नीचे दिए गए सभी ग्रहों का विस्तार से विवरण दिया गया है :
सूर्य
सूर्य के प्रकाश से ही सब प्रकाशित है | सूर्य ग्रह को ऊर्जा, पिता, आत्मा का कारक माना जाता है। सभी ग्रहों का राजा भी सूर्य है। व्यक्तित्व ,पिता,वैद,प्रतिष्ठा , सोना, ताम्बा ,युद्ध में विजय,सुख,राजसेवक,ताक़त,देवस्थान, जंगल,पहाड़, पित्त प्रकृति आदि का विचार सूर्य से किया जाता है | जातक की कुंडली में जब सूर्य की स्थिति मजबूत होती है तो उसे बहुत से फायदे मिलते हैं। उसे अच्छी नौकरी, सम्मान और उच्च पद प्राप्त होता है। वह जन्मजात लीडर होता है । सूर्य अग्नि तत्व, पुरुष जाती, पूर्व दिशा का स्वामी, स्वभाव से प्रचंड और दिन में बलि होता है | कुंडली में सूर्य मेष राशि में 10 अंश तक उच्च और तुला राशि में नीच का होता है | सूर्य का रत्न माणिक्य होता है | सूर्य से पृथ्वी की दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है | सूर्य से रक्त, पित विकार, अतिसार, पेट की बीमारी ,सिर दर्द, नेत्र रोग, ज्वर, ह्रदय रोग आदि का विचार किया जाता है |ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात चन्द्रमा की
चंद्रमा
चंद्रमा को मन, माता, जल और यात्रा का कारक माना गया है। चन्द्रमा के पीड़ित होने से मन व्याकुल रहता है| अगर चन्द्रमा कमजोर हो तो व्यक्ति को मानसिक तनाव, अवसाद जैसी समस्याएं घेर लेती हैं | अगर चन्द्रम कुंडली में शुभ अवस्था हो तो जातक का मनोबल बढ़ा हुआ होता है | जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है। चन्द्रमा को मन, बुद्धि, माता, धन, खूबसूरती, सफेद रंगो की वस्तुएँ , राजशासन की मोहर,चांदी, मोती, मीठे व्यंजन, जल, सुंदरता, गाय और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है | तीव्र गति से घुमने वाला ये ग्रह सवा दो दिन एक राशी में भ्रमण पूरा करता है | चन्द्रमा वृष राशी में उच्च और वृश्चिक राशी में नीच का माना जाता है | चन्द्रमा से वाट , कफ का विचार किया जाता है | चन्द्रमा जलीय , स्त्री गृह और वायव्य दिशा का स्वामी होता है | चन्द्रमा से कफ संबंधित रोग, गला, छाती, मानसिक रोग के अलावा आँखों की बीमारी, कैल्शियम की कमी, मिरगी के दौरे और आलस का विचार भी किया जाता है | ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात मंगल की |
मंगल
मंगल ग्रह को शक्ति, साहस, क्रोध,उदारता , उत्तेजना, शस्त्र, शत्रुता, अग्नि, सैनिक, उत्साह ,वीर्य, झूठी बातें, पाप कर्म ,चोट, छोटे भाई का कारक माना माना गया है | मंगल गृह को अग्नि तत्व. पित् प्रकृति, तमोगुणी, युवावस्था, उग्र स्वभाव, क्षत्रिय जाति, रात्री में बली, क्रूर ग्रह माना गया है |मंगल मकर राशी में 28 अंश पर उच्च तथा कर्क राशी में 28 अंश पर नीच कहा गया है | मंगल क्रोधी स्वभाव, लाल रंग, धैर्य एवं पराक्रम का प्रतीक एवं दक्षिण दिशा में बलवान माना जाता है | पित् विकार, साहस में कमी, गर्मी, रक्तचाप, गुप्तांगो में रोग गुर्दा, मसपेशियाँ, पेट से पीठ तक कमजोरी, बुखार, चोट लगना, जलना, चेचक, खसरा आदि का विचार किया जाता है | ये मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी होने के साथ साथ छोटे भाई – बहिन, भूमि, सेना, शत्रु, क्रोध, ऑपरेशन, पुत्र-संतान, तांबा एवं सोना का करक एवं 3, 6 एवं 10 भावो का भी कारक होता है । ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात बुध की |
बुध
बुध गृह वाणी का कारक गृह है | बुध गृह से ज्योतिष, कानून, व्यवसाय, लेखन कार्य, अध्यापन, गणित, संपादन, प्रकाशन, खेल, वात, पित, कफ , कला, निपुणता, सत्य वचन, शिल्पकला, मीडिया, मित्र, हरे रंग का विचार किया जाता है | बुध ग्रह को स्पष्टवक्ता, रजोगुणी, पृथ्वी तत्व, नपुंसक ग्रह माना गया है | ये पापी ग्रहों के साथ पापी एवं शुभ ग्रहों के साथ शुभ फल देता है इसके अलावा यह उत्तर दिशा , कन्या एवं मिथुन राशियों का स्वामी होता है | बुध कन्या राशि में उच्च तथा मीन राशि में नीच माना गया है साथ ही साथ वाणी, बुद्धि, विघा, मित्र सुख, मामा, शिशु और चतुर्थ भाव का कारक भी होता है । बुध ग्रह से शरीर की स्नायु तंत्र प्रक्रिया, अस्थमा, गूंगापन, मतिभ्रम, नाड़ी कंपन, चर्मरोग,दिमाग, फेंफडे, जीभ, बुद्धि, वाणी का विचार किया जाता है | बुध एक तटस्थ ग्रह है जो जिस ग्रह की संगति में आता है उसके अनुसार जातक को फल देता है। बुध ग्रह को तर्क शक्ति, संचार और मित्र का कारक माना गया है | ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात शुक्र की |
शुक्र
प्रेम, रोमांस, ऐश्वर्य, विलासिता, कामवासना, भौतिक सुख साधन का विचार शुक्र से किया जाता है , वह प्रेमी और रोमांस करने वाला होता है। बुद्ध के बाद सौरमंडल में सूर्य के नजदीक रहने वाला ग्रह शुक्र ही है | वृष एवं तुला राशियों का स्वामी होता है | प्रेम – प्रसंग, सौंदर्य एवं आकर्षण का प्रतीक शुक्र को माना गया है ये शुभ ग्रह, जल तत्व, अग्नि कोण दिशा का स्वामी है | संगीत, गायन, चित्रकला, सौंदर्य श्रृंगार, कवि, कला, विवाह – सुख, व्यापार, वाहन सुख,मंत्री, वैभव, सुगंध, घर, मकान, तथा मैथुन का विचार भी शुक्र से किया जाता है | शुक्र ग्रह से अंडाशय, गुर्दा, मुत्राशय संबंधी रोग, धात – प्रेमह, शुगर, पथरी एवं स्त्री रोगों आदि का विचार भी किया जाता है | जिस जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह अच्छा होता है वह भौतिक सुख साधनो से संपन्न होता है। शुक्र ग्रह स्त्री, वाहन, काम, वीर्य, सुख, वासना, आभूषण, चाँदी आदि का कारक ग्रह है । मनोरंजन और सिनेमा जगत का कारक भी शुक्र ग्रह है | ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात गुरु की |
गुरु
बृहस्पति को सेनापति भी कहा जाता है ये एक राशि में लगभग 13 महिना रहता है | ज्योतिष, पति सुख, खजाना, धर्मशास्त्र, धन, ज्ञान ,आचार्य, अच्छा आचरण, यज्ञ,बड़ा भाई, राज्य से मान सम्मान,तपस्या, आध्यात्मिकता, श्रद्धा और विद्या इत्यादि का विचार भी बृहस्पति से किया जाता है | ये धनु और मीन राशियों का स्वामी और कर्क राशि में उच्च का माना गया है | आकाश तत्व और ईशान दिशा का स्वामी है | मोटापा , चर्बी , पेट और पाचन क्रिया पर इसका अधिपत्य है | गुरु कफकारक है | बुध और बृहस्पति दोनों ग्रहों से बुद्धि देखी जाती है फर्क इतना है बुध से किसी बात को जल्दी समझ लेना होता है जबकि बृहस्पति से विचार और चिंतन देखा जाता है | ग्रहों का स्वभाव ( Grahon Ka Swabhav ) की कड़ी में आगे बात शनि की |
शनि
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि रोग, विज्ञान, लोहा, खनिज, कर्मचारी, सेवक, जेल, आयु और दुख का कारक माना जाता है। शनि ग्रह की चाल धीमी होती है ये एक राशि में करीब ढाई वर्ष रहता है।जातक की कुंडली में यदि शनि अशुभ स्थान पर बैठा है तो नकारात्मक फल देता है। शनि ग्रह मकर एवं कुम्भ राशियों का स्वामी होता है और तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीच का कहा गया है ये रात्री बली ग्रह है । हर काम में रूकावट तमोगुणी, आलस्य युक्त , वृद्ध अवस्था, चुगलखोर, वायु तत्व प्रधान और नपुंसक ग्रह है | और भी विस्तार से अगर बात करें तो शनि ग्रह को रोग, आयु, मृत्यु, अपमान, कुटिलता, स्वार्थ, लोभ, मोह, निंदा, आलस्य, नौकर, व्यापर, लौहा, दुःख, विपत्ति, कानून, जुआ, शराब, काला कपड़ा, शल्य नर्वस–सिस्टम, गठिया, वायु – विकार, लकवा, दरिद्रता, मजदूरी, कर्ज, भूमि का कारक भी माना गया है |
ज्योतिष में शनि एक पापी ग्रह है, परंतु यदि शनि कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है। कमजोर शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। इसके कारण व्यक्ति का शरीर व बाल खुश्क होते हैं। शरीर का वर्ण काला होता है। हालाँकि व्यक्ति गुणवान होता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा। वंही - ज्योतिष में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है। ये 6, 8, 12 भाव का कारक है । पक्षाघात, पेट की बीमारी, कैंसर, टी.बी. जैसे लम्बे रोग भी शनि से देखे जाते हैं ।