कर्म और भाग्य – ज्योतिष की दृष्टि में – 1 (Karm aur Bhagya Kya Hai – 1)

कर्म और भाग्य - ज्योतिष की दृष्टि में -1(karm aur Bhagya Kya hai-1)

कर्म(Karm) बड़ा है या भाग्य(Bhagya) ये ऐसा ही सवाल है, जैसे पहले मुर्गी आयी या अंडा - इसका जवाब बहुत मुश्किल जान पड़ता है लेकिन है नहीं अगर मुश्किल है तो हमारी देखने की प्रवृति और हमारे दृष्टिकोण । आपने अक्सर एक पहेली को हल किया होगा या उसके बारे में सुना होगा - एक जंगल का चित्र होता है उसमे हमें किसी किसान या बुढ़िया को खोजना होता है , हमारी लाख कोशिशों के बाद भी अक्सर वो किसान या बुढ़िया नज़र नहीं आते या कहे हमारी नज़र नहीं पड़ती , लेकिन एक बार जब वो नज़र आ जाये तो फिर ओझल भी नहीं होती । यही कर्म(Karm) और भाग्य(Bhagya) के सवाल पर भी पूरी तरह फिट बैठती है और अंडा मुर्गी पर भी । क्योंकि अंडा और मुर्गी दो चीजें नहीं है एक ही चीज के दो रूप है अंडा जो मुर्गी बनने जा रहा है , मुर्गी फिर एक और अंडा बन सकती है - ये एक युगपत घटना है । कर्म और भाग्य(Karm Aur Bhagya) के साथ भी ऐसा ही है - कर्मवादी कहता है बिना कर्म(Karm) किये कुछ नहीं हो सकता "मैं" कुछ भी कर सकता हूँ मैं अपने भाग्य(Bhagya) का खुद निर्माण कर सकता हूँ , मैं परम स्वतंत्र हूँ । वंही भाग्यवादी कह सकता है कि जो हो रहा है सब कुछ भाग्य(Bhagya) से हो रहा है , जो कुछ मेरे भाग्य(Bhagya) में लिखा है वो तो मुझे मिलेगा ही चाहे मैं कुछ करूँ या न करूँ ऐसा सोचकर भाग्यवादी हाथ पर हाथ रखकर बैठ सकता है , लेकिन यंहा एक बहुत ही बारीक पर्दा है जो कर्म और भाग्य(Karm Aur Bhagya) के बीच में पड़ा है उसका फर्क समझना जरुरी है - जब भाग्यवादी ये फैसला करता या विचारता है कि जो मेरे भाग्य(Bhagya) में लिखा है वो तो मुझे मिलेगा ही उसके लिए चाहे मैं कुछ करूँ या न करूँ , भाग्यवादी का ये विचार भी एक कर्म(Karm) ही है जाने अनजाने उसने ये एक कर्म(Karm) ही किया है और उसको इसका परिणाम भी उसकी नीयत के हिसाब से ही मिलेगा - कहने का मतलब कर्म(Karm) से छुटकारा संभव ही नहीं है इसलिए भगवान् कृष्ण ने भी गीता में यही कहा है "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥" अर्थात : तेरा कर्म(Karm) करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म(Karm) न करने में भी आसक्ति न हो॥ - कि तू सिर्फ कर्म(Karm) किये जा फल कि इच्छा न कर , क्योंकि फल तेरे अधीन नहीं है और कर्म(Karm) करते हुए अपने "मैं" को हटा दे , हर कर्म(Karm) को मुझे समर्पित करता हुआ चल ऐसा मत सोच कि "मैं " कर रहा हूँ। वैसे भी अगर हम ध्यान से गौर करेंगे तो पाएंगे , जो भी महत्वपूर्ण है सब कुछ अपने आप ही हो रहा है - ब्रह्माण्ड अभी भी फ़ैल रहा है , ग्रह-नक्षत्र अपने से चल रहे हैं, सूरज -चाँद हर रोज निकल रहे हैं, धरती घूम रही है - हम उसमे नाहक बीच में आ जाते हैं या हमारा "मैं" बीच में आ जाता है - अगर कोई आपसे पूछे आप सांस ले रहे हो या अपने आप आ रही है , आप अपनी पलके झपका रहे हो या अपने आप झपकी जा रही है , शरीर की सारी क्रियाएं अपने आप हो रही हैं हम बीच में नाहक अपने "मैं" को ले आते हैं यही "मैं" तो अज्ञान है , इसी अज्ञान को दूर करने का नाम अध्यात्म है इसी "मैं" को जान लेना ही तो ज्ञान है "मैं कौन हूँ" जब ये सवाल खड़ा होना शुरू हो जाए तो समझो अध्यात्म में प्रवेश ले लिया अब यात्रा शुरू हुई । ये विषय बहुत लम्बा हो जायेगा इसलिए यंहा मैं इसको सिलसिलेवार ढंग से लाता रहूँगा यंहा मैं बात कर रहा था कर्म(Karm) और भाग्य(Bhagya) के बारे में - भाग्य(Bhagya) शब्द सुनते ही ज्योतिष भी आ ही जाता है कुछ लोगों को ऐसा भ्रम हो सकता है कि ज्योतिष एक अंधविश्वास है। एक मायने में ये बात सच भी लग सकती है । क्योंकि अगर हम कार्य और कारण के बीच का सम्बन्ध नहीं बता पाएं तो वो वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं उतरती मतलब कॉज एंड इफ़ेक्ट का सम्बन्ध । यंहा मैं आपको साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैं ये सिद्ध नहीं करने जा रहा कि ज्योतिष एक वैज्ञानिक चिंतन है क्योंकि इसकी कोई जरुरत नहीं है ये तो स्वयंसिद्ध है ज्यों ज्यों आगे चर्चा चलेगी आपको परत दर परत इसका आभास होता जायेगा ।ज्योतिष पूर्ण विज्ञानं है लेकिन समय के चक्र और सभ्यताओं के विनाश के क्रम में कुछ सूत्र छूट गए हैं जिन्हे आज के वैज्ञानिक युग में आसानी से ढूँढा भी जा सकता है और सिद्ध भी किया जा सकता है , और ज्योतिष को सिर्फ भविष्यकथन का जरिया मान लेना सबसे बड़ी भूल है , वो इसका मात्र एक छोटा सा आयाम है । ज्योतिष का मूलभूत सिद्धांत है और वैज्ञानिक चिंतन भी कि भविष्य अतीत से ही निकलता है। आपका आज -कल से निकला है और आपका कल आज से निकलेगा। और ज्योतिष का ये भी स्पष्ट विचार है कि जो कल होने वाला है वह किन्ही अर्थों में आज भी मौजूद होना चाहिए। मनुष्य जाति के इतिहास में शायद ज्योतिष सबसे पुराना विषय है लेकिन आज सबसे तिरस्कृत और हास्यास्पद स्थिति में भी - इसके अनेक अनेक कारण हैं जिनकी चर्चा मैं सिलसिलेवार ढंग से करूँगा , आप सब ज्ञानीजन प्रतीक्षा करें , लेकिन अभी विषय पर लौटते हैं । ज्योतिष एक वैज्ञानिक चिंतन है और इसकी सबसे गहरी जड़ें भारत में ही पैदा हुई यही इसका जन्म हुआ और ज्योतिष के कारण ही गणित का भी जन्म हुआ , सारी दुनिया को गणित के अंक भारत ने ही दिए , फिर पूरी दुनिया में ज्योतिष का विस्तार हुआ । मैं अक्सर कहता हूँ ",ज्योतिष , अध्यात्म के विस्तार का एक अंग है और भविष्यफल उसका एक आयाम , मेरा मानना है कि वैदिक ज्योतिष में अध्यात्म की ऊंचाई और मनोविज्ञान की गहराई दोनों का समावेश है - इसका ज्ञान कुंडली के माध्यम से व्यक्ति के मन की गहराईयों में उतरने और व्यक्तित्व में झांकने का सबसे बड़ा वैज्ञानिक तरीका बन सकता है और समाधान का जरिया भी " ......क्रमशः ....

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